होने दो सागर का मंथन
होने दो सागर का मंथन विष निकलेगा- यह भय क्यों हो क्यों हो क्रंदन- पाना तुमको यदि अमृत है मंथन तो करना ही होगा छोड़ रहे क्यों मध्य मार...
कुछ तो कहेगा दिल ये गर तलब इसे हुई, ये बात और है कि तुम सुनो या ना सुनो, मस्ती फिजां की देख के बहकेगा दिल ज़ुरूर, बहके हुए इस दिल को तुम चुनो या ना चुनो!!
होने दो सागर का मंथन विष निकलेगा- यह भय क्यों हो क्यों हो क्रंदन- पाना तुमको यदि अमृत है मंथन तो करना ही होगा छोड़ रहे क्यों मध्य मार...