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सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा,
हम बुलबुलें हैं इसकी ये गुलगुला हमारा।

बुड्ढे कुंवारियों से नैना लड़ा रहे हैं,
मकबूल माधुरी की पेंटिंग बना रहे हैं,
ऊपर उगी सफेदी भीतर दबा अंगारा,
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।

सत्ता के सिंह बकरी की घास खा रहे हैं,
गांधी की लंगोटी का बैनर बना रहे हैं,
चर-चर के खा रहे हैं चरखे का हर किनारा,
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।

नारी निकेतन उसके ही बल पे चल रहे हैं,
हर इक गली में छै छै बच्चे उछल रहे हैं,
जिसको समझ रहा है सारा शहर कुंवारा,
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।


दंगा कराने वाले गंगा नहा रहे हैं,
चप्पल चुराने वाले मंदिर में जा रहे हैं,
थाने में बंट रहा है चोरी का माल सारा,
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।

साहब के संग सेक्रेटरी पिकनिक मना रही हैं,
बीवी जी ड्राइवर संग डिस्को में जा रही हैं,
हसबैण्ड से भी ज्यादा मैडम को टॉमी प्यारा,
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।

जो मर्द हैं वो घर में करते हैं मौज देखो,
लालू के घर लगी है बच्चों की फौज देखो,
परिवार नियोजन का किन्नर लगाएं नारा,
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।

है छूट लूटने की ए देश लूट खाओ,
लेने में पकड़ जाओ तो देकर के छूट जाओ,
चाहे जहाँ पे थूको, खुलकर बहाओ धारा,
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।

कोठे में जो पड़े थे, कोठी में रह रहे हैं,
खुद को शिखंडी सिंह की औलाद कह रहे हैं,
जनता के वास्ते तो मुश्किल है ईंट गारा,
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।

........................
डा. सुनील जोगी

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  1. kya bat he !!!!!!!!!!!

    maza aa gaya pad kar

    acho acho ke raj kul gaye


    http://kavyawani.blogspot.com/


    shekhar kumawat

    ReplyDelete
  2. इस कविता पर तो पी.एच.डी. की जा सकती है. तत्कालीन समाज का सारा निचोड़ है आपकी इस रचना में.
    रत्नेश त्रिपाठी

    ReplyDelete

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