ये कैसी दीवानगी मुझको अता कर दी मेरे मौला,
कहीं क़ाफ़िर न बन जाऊँ मैं उसकी मौहब्बत में,
ख़ुदा तु मुआफ़ कर देना मुझे अपना समझ कर के,
मैं सज़दे में झूकूँ उसके, ये जरूरी समझता हूँ,
यहाँ पर मुझको चाहे लोग दे दें नाम दीवाने का,
मैं मौहब्बत में उसकी बन्दगी करना जरूरी समझता हूँ,
जमाने के रिवाज़ों की नहीं परवाह है मुझको,
तू मेरी हमसफ़र हो, बस यही अपनी ख्वाहिश समझता हूँ,
तुम्हारा नाम लेने से अगर तुम पर इल्ज़ाम आता है,
लबों को बन्द रखना उम्र भर, मैं जरूरी समझता हूँ,
ये कैसी बन्दिशें खुद पर लगा ली हैं तुमने ओ जानाँ,
तड़प मेरी मौहब्बत की तुम्हारे दिल में भी है, समझता हूँ....
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