एक फकीर एक बार राजा के पास पहुंचा।
राजा से उसकी मुलाकात कराई गई। फकीर ने राजा से कहा कि वो बहुत अच्छा गाना गा सकता है।
राजा ने कहा, “सुनाओ।”
भरे दरबार में फकीर गाने लगा। उसने एक गाना गाया, राजा ने फरमान सुनाया इसके घर सौ स्वर्ण मुद्राएं भिजवा दी जाएं।
फकीर को यकीन ही नहीं हुआ कि ऐसा भी हो सकता है। उसने एक और गाना राजा को सुनाया। राजा ने खुशी में झूमते हुए अपने लोगों को आदेश दिया कि अब इसके घर हज़ार स्वर्ण मुद्राएं पहुंचनी चाहिए।
फकीर तो मानो खुशी के पागल ही हो गया। वो राजा को एक-एक कर कई गीत सुनाता गया। राजा भी स्वर्ण मुद्राओं की गिनती बढ़ाता गया।
फकीर खुशी में झूमता हुआ अपनी झोपड़ी में पहुंचा।
बच्चे बिलख रहे थे। पत्नी इंतज़ार कर रही थी कि आज कहीं से भीख में कुछ मिला हो तो पकाऊं।
घर पहुंचते ही फकीर ने खुशी में चीखता हुआ अपनी पत्नी से कहा, “ अब हमारे सारे दुख भरे दिन बीत गए। अब से हम नई ज़िंदगी जिएंगे। बच्चे स्कूल जाएंगे। पढ़ेंगे। हम बड़े लोगों की तरह रहेंगे।”
पत्नी फकीर के मुंह तक अपना मुंह लेकर आई। उसे सूंघा। कहीं आज किसी ने मदिरा पान तो नहीं करा दिया। पर मदिरा की कोई दुर्गंध नहीं।
पत्नी ने पूछा कि ऐसी बहकी-बहकी बातें क्यों कर रहे हो? आज कुछ मिला या नहीं?
“अरी भागवान धीरज रख। आज मैं राजा के पास गया था। मैंने उसे अपना गाना सुनाया। राजा बहुत खुश हुआ। उसने आदेश दिया है कि इतनी स्वर्ण मुद्राएं मेरे घर भिजवा दी जाएं।”
पत्नी को यकीन नहीं हुआ। पर फकीर ने उससे जब इतनी गंभीरता से पूरी कहानी सुनाई तो उसे यकीन हो गया कि वो सच बोल रहा है। दोनों ने एक दूसरे से कहा, “राजा हो तो ऐसा ही हो।”
उस रात घर में कुछ नहीं पका। बच्चे बिलख-बिलख कर सो गए।
फकीर इंतज़ार करता रहा कि आज कुछ आएगा। पर कुछ नहीं आया। वो रोज इंतज़ार करता, पर कुछ नहीं आता। फकीर किसी तरह मांग-मांग कर जीता रहा, पर स्वर्ण मुद्राएं नहीं आईं। कई दिन बीत गए। साल बीत गया।
साल बीत जाने के बाद फकीर से नहीं रहा गया। वो दुबारा राजा के पास पहुंचा। राजा फिर फकीर से मिला। फकीर ने राजा से कहा कि महाराज, मेरे गाने से खुश होकर आपने वादा किया था कि इतनी स्वर्ण मुद्राएं मेरे घर भिजवाएंगे। पर अब तक मेरे घर स्वर्ण मुद्राएं नहीं पहुंचीं।
राजा ने फकीर से कहा, “तुम बहुत अच्छा गाते हो फकीर। तुम्हारे गाने मुझे बहुत कर्णप्रिय लगे। मेरे कानों में तुम्हारे गाने से मानों मिश्री घुल गई। तुम्हारे गाने सुन कर मैंने जो तुमसे जो कहा, वो तुम्हारे कानों को भी बहुत अच्छा लगा होगा। तुम्हारे कानों में भी मिश्री घुली होगी। अब क्या लेना, क्या देना। जो तुमने कहा वो मुझे अच्छा लगा। जो मैंने कहा, तुम्हें अच्छा लगा। बात खत्म।”
फकीर समझ गया।
***
फकीर तो समझ गया।
हम कब समझेंगे,नहीं जानते। हम तो उन वादों को सुन-सुन कर सैकड़ों साल खुश होते रहेंगे, जो कानों को प्रिय लगते हैं।
वैसे भी फकीर ने समझ कर क्या कर लिया, जो हम करेंगे। वो अपनी झोपड़ी में लौट गया, अगले दिन कुछ मांगने के लिए। कर्ण प्रिय बातें करने वाले राजा किसी को दुख नहीं देते। पर वो कुछ भी नहीं देते। वो 68 साल तक सिंहासन पर बैठे रह जाएं तब भी फकीर की झोपड़ी झोपड़ी ही रहेगी।
फकीर अब राजा के पास नहीं जाता।
फकीर अब गाना भी नहीं गाता। उसे कर्णप्रिय बातों से नफ़रत सी हो गई है। वो समझ गया है कि उसका जन्म मांग कर खाने के लिए हुआ था, मांग कर ही वो खाता है। वो समझ गया कि उसके बच्चे स्कूल नहीं जाने के लिए पैदा हुए हैं, इसलिए वो बच्चों को भी मांगने की ट्रेनिंग दे रहा है।
आप भी इस सच को समझिए। वादे किए जाते हैं, कानों को मधुर लगने के लिए। इससे आगे अगर कोई भी और उम्मीद आप पालते हैं, उन्हें यादों में ज़िंदा रखते हैं तो यह यादों की गलती है, वादों की नहीं।
आभार: संजय सिन्हा #Rishtey Sanjay Sinha
Post a Comment
आप के द्वारा की गई टिप्पणी मेरा मार्गदर्शन करती है। अतः अपनी प्रतिक्रिया अवश्य टिप्पणी के रूप में दें।