एक दिन एक आदमी बाज़ार से गुज़र रहा था। वहाँ बड़ी भीड़-भाड़ थी, क़िस्म-क़िस्म की, ढ़ेर सारी दुकानें थीं। तभी उसने देखा कि एक जगह पांच-पांच सौ रुपए में पक्षी बिक रहे हैं और बहुत सारे लोग उन्हें बड़े शौक़ से खरीद भी रहे हैं। यह देखकर उसने सोचा कि जब ये छोटे-छोटे पक्षी इतनी बड़ी क़ीमत पर हाथों-हाथ बिक सकते हैं, तो उसके पास तो बड़े पक्षी हैं। उनकी तो दुगनी क़ीमत मिलनी चाहिए। यह विचार आते ही वह ख़ुशी-ख़ुशी घर की ओर चल पड़ा और वहाँ से अपने पालतू पक्षियों को लेकर बाज़ार पहुंच गया। वहां बिकते पक्षियों की बग़ल में वह अपना मजमा लगाकर बैठ गया और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा, 'बड़ा पक्षी आठ सौ रुपए में... बड़ा पक्षी आठ सौ रुपए में।' वैसे तो उसने अपने पक्षियों की हज़ार रुपए क़ीमत आंकी थी, पर उसे लगा कि शुरुआत में कुछ छूट देनी चाहिए, ताकि लोग जल्दी आकर्षित हों।
उसे उम्मीद थी कि अपेक्षाकृत 'कम क़ीमत' पर उसके पक्षी भी हाथो-हाथ बिक जाएंगे। लेकिन हुआ उल्टा। बल्कि कुछ और ही हो गया। वहां से गुज़रते लोग उसकी आवाज़ सुनकर देखते और हंसते-मुस्कराते निकल जाते। कोई भी उसके 'सस्ते' पक्षी ख़रीदने नहीं आया। आख़िर उसने एक बुजुर्ग को बुलाकर अपनी परेशानी बताई, 'लोग मेरे पक्षियों से आधे आकार वाले पक्षी ख़रीद रहे हैं, पर मेरे पास कोई भी नहीं आ रहा है।' बुजुर्ग उसकी नादानी पर पहले तो मुस्कराए, फिर बोले, 'बेटा, लोग बोलने वाले तोते ख़रीद रहे हैं। वे बोलते-बतियाते हैं, इसलिए इतने क़ीमती हैं। तुम्हारी मुर्गियां कौन ख़रीदेगा, वह भी आठ सौ रुपए में।' यह सुनकर उस आदमी को गुस्सा आया। उसने चिल्लाकर कहा, 'यह दुनिया भी अजीब अहमक है। तोते बोलते हैं, इसलिए उनकी बड़ी क़ीमत है। मेरी मुर्गियां ख़ूब चिंतन करती हैं, लेकिन चटर-पटर कर किसी का भेजा ख़राब नहीं करती हैं, तो उनकी कोई क़ीमत नहीं है! यह तो कोई बात नहीं हुई।' उसका तर्क सुनकर बुजुर्ग मुस्कराए बगैर न रह सके।
सबक जिन्दगी का:- 1. सब पर एक ही पैमाना लागू नहीं होता। दो तरह के लोगों में कोई तुलना
नहीं हो सकती।
2. हम जिसे अपना सकारात्मक पहलू समझ रहे होते हैं, कई बार वही हमारा
नकारात्मक पहलू साबित होता है। अगर अवगुण को गुण बताने पर तुले रहे,
तो जगहंसाई ही होगी।
आप अच्छा लिखते हैं लेकिन काली पृष्ठभूमि में नीले से लिखने की क्या ज़रुरत है?
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