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नुराग 'आर्कुट' पर नये मित्रों की खोज कर रहा था कि अचानक एक चेहरे पर आकर उसकी नजरें रूक गयीं। वो गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ और सपनों से भरी हुई आँखें- जैसे सुबह की पहली किरण कोई मधुर गीत सुनाने के लिये नदी की लहरों पर उतरी हो। उसने ध्यान से फोटो के नीचे लिखा हुआ नाम पढ़ा- पंखुड़ी। उसका नाम उसके चेहरे की सुन्दरता को ठीक उसी तरह बयां कर रहा था जैसे सुबह-सुबह कमल के पत्तों पर पड़ी हुई ओस की बूँदें। अनुराग, पंखुड़ी को फ्रैन्डशिप रिक्वेस्ट भेजे बिना न रह सका। अब उसे इंतजार था तो सिर्फ ये कि पंखुड़ी भी उसकी फ्रैन्डशिप रिक्वेस्ट को स्वीकार कर ले। शुरु में कुछ दिन तो उसने बेसब्री से पंखुड़ी के जवाब का इंतजार किया पर दूसरी तरफ से जब कोई जवाब नहीं आया तो उसने उम्मीद छोड़ दी और वह अपने कार्य में व्यस्त हो गया। कुछ दिनों बाद जब उसने 'स्कैप' चेक करने के लिये 'आर्कुट' पर लॉग इन किया तो ये देखकर उसे बेहद खुशी हुयी कि पंखुड़ी ने उसकी फ्रैन्डशिप रिक्वेस्ट स्वीकार कर लिया था, साथ में उसने एक 'स्कैप' भी किया था कि- ' अनुराग, यूँ तो मैं किसी अजनबी शख्स को अपनी फ्रैंड लिस्ट में शामिल नहीं करती हूँ पर ना जाने तुममें ऐसी क्या बात है कि मेरा दिल तुम्हें मेरी फ्रैंड लिस्ट में शामिल करने की जिद पर अड़ा हुआ है। इसलिये मैं तुम्हें अपने दोस्तों में शामिल कर रही हूँ और आशा करती हूँ कि मेरे दिल ने तुम पर जो विश्वास किया है उस विश्वास को तुम हमेशा बरकरार रखोगे।'

       ये 'स्क्रैप' पढ़्कर अनुराग की तो खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। उसने तुरंत पंखुड़ी को 'स्क्रैप' करके उसके द्वारा भेजी गयी फ्रैन्डशिप रिक्वेस्ट को कंफर्म करने के लिये धन्यवाद किया साथ में ये वादा भी किया कि वो कभी भी उसके इस विश्वास को टूटने नहीं देगा। कुछ दिनों तक यूँही 'स्क्रैप' का आदान-प्रदान करते करते कब दोनों एक दूसरे से 'फोन' पर बात करने लगे, ये उनको भी पता नहीं चला। 'फोन' पर बात करते-करते दोनों के बीच संवाद बढ़ा और परस्पर आत्मीयता की जुगलबंदी शुरु हो गयी। अब तो जब तक अनुराग, पंखुड़ी से दिन में कम से कम एक बार बात नहीं कर लेता था तब तक उसके मन के सागर में बेचैनी की लहरें इठलाती-बलखाती रहती थीं। वो कहते हैं न कि प्यार कब, कहाँ और किससे हो जायेगा, ये प्यार करने वाले को भी पता नहीं चलता। यही हाल अनुराग का भी था। उसे भी पंखुड़ी से प्यार हो गया था। उस चेहरे से जिसकी उसने सिर्फ फोटो देखी थी और जिसकी आवाज सुनी थी, वो आवाज जो अनुराग को मन्दिर की आरती की तरह भी लगते थे और प्रेम की पुलकित प्रार्थना की भी तरह। 'फोन' पर बात करते हुए कई बार अनुराग ने चाहा कि अपना दिल खोलकर पंखुड़ी के सामने रख दे, उससे कह दे कि वो उससे बेहद प्यार करता है। पर हर बार डर उसके दिल पर हावी हो जाता कि कहीं पंखुड़ी ने उसके प्यार को अस्वीकार कर दिया तो वो तो अपनी सबसे अच्छी दोस्त को भी खो बैठेगा। पर प्यार आखिर दिल के पिंजरे में होकर कब तक रह सकता था। कभी न कभी तो उसे पिंजरे को तोड़ कर बाहर आना ही था। एक बार बिजनेस मीटिंग के लिये अनुराग को पंखुड़ी के शहर जाना पड़ा। यूँ तो इससे पहले भी अनुराग ने पंखुड़ी से कई बार मिलने की ख्वाहिश ज़ाहिर की थी पर हर बार पंखुड़ी ने किसी न किसी बहाने इंकार कर दिया था। पर इस बार अनुराग ने पंखुड़ी से साफ शब्दों में कहा था कि मैं तुम्हारे शहर में हूँ और इस बार मैं कोई बहाना सुनना नहीं चाहता हूँ, तुम्हें मुझसे मिलने आना होगा। पंखुड़ी ने उससे कहा था- ' ठीक है अनुराग, मैं तुमसे मिलने आऊँगी, लेकिन कहाँ और कब मिलना है ये मैं तुम्हे बताऊँगी। अनुराग ने कहा- ' मैं तुम्हे मीटिंग समाप्त होने के बाद फोन करूँगा।' मीटिंग समाप्त होने के बाद अनुराग ने पंखुड़ी को फोन किया तो पंखुड़ी ने उसे हजरतगंज चौराहे पर स्थित कॉफी डे में एक घंटे बाद आने को कहा। अनुराग को तो एक-एक पल काटना मुश्किल हो रहा था, उसने अपनी घड़ी की तरफ देखा अभी 4 बजे थे। एक बार उसका मन किया कि घड़ी की सुईयों को घूमा कर 5 बजा दे। फिर उसे अपनी मूर्खता पर हँसी आयी कि- ऐसा करने से समय अपनी रफ्तार तो बदल नहीं लेगा। 5 बजते ही उसके कदम अपने आप कॉफी डे के पास पहुँच गये। अनुराग ने अन्दर प्रवेश करते हुये इधर-उधर नजरें घुमा कर देखा-तो एक टेबल पर वो खूबसूरत चेहरा नजर आ गया जिससे मिलने की हसरत उसने बहुत दिनों से सजो रखी थी। अनुराग ने पंखुड़ी के पास पहुँच कर मुस्कुरा कर उसे हॉय कहा और उसके सामने की चेयर पर बैठ गया। थोड़ी देर खामोशी रही, अचानक पंखुड़ी बोल उठी- ' अनुराग, तुम्हारी आँखें बहुत सुन्दर हैं। मुझे लगता है कि जो लड़की इन आँखों में समाएगी वह बहुत भाग्यशाली होगी। तुम्हारी आँखों को देखकर मेरा मन करता है कि जोर जोर से गाना गाऊँ- तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है।' अनुराग ने सुना तो जैसे एक साथ कई राग-रागनियां मन में बजने लगीं। उसने पंखुड़ी के हाथों को अपने हाथ में लेते हुए कहा- ' इन आँखों में तो पहले से ही एक सूरत समायी हुयी है।' पंखुड़ी ने ये सुनकर चहकते हुए कहा- ' कौन है वो हसीन लड़की, क्या उस लड़की का नाम तुम अपनी सबसे अच्छी दोस्त को नही बताओगे।' 'वो तुम हो पंखुड़ी, मेरी इन आँखों में तुम्हारी ही सूरत समायी हुयी है। मैं तुमसे बहूत प्यार करता हूँ, तुमसे शादी करना चाहता हूँ।' ये सुनकर पंखुड़ी ने अपने हाथों को अनुराग के हाथों में से मुक्त करते हुये कहा- ' अनुराग, मैं भी तुमसे बेहद प्यार करती हूँ। पर जैसा तुम सोच रहे हो वैसा नहीं हो सकता। जरूरी नही है कि हर रिश्ते को कोई नाम दिया जाये।' थोड़ी देर तो अनुराग को ये समझ में नही आया कि पंखुड़ी क्या कह रही है, फिर उसने अपने आपको सम्भालते हुए पंखुड़ी से कहा- ' तुम भी अगर मुझसे प्यार करती हो तो फिर क्या वजह है जो तुम इस रिश्ते को कोई नाम नही देना चाहती हो।' 'अनुराग तुम मुझसे इसकी वजह मत पूछो, मैं तुम्हे बता नही पाऊँगी' पंखुड़ी ने रोते हुये कहा। ' ठीक है पंखुडी, अगर तुम्हे नही बताना है तो मत बताओ, पर इतना तुम भी जान लो कि मैं तुम्हारे बिना जी नही पाऊँगा' ये सुनकर पंखुड़ी अपने दिल को और काबू में न रख सकी। उसने अनुराग से कहा- ' ठीक है अगर तुम्हारी यही जिद है तो सुनो, ये जो तुम मेरा खूबसूरत जिस्म देख रहे हो इसके पीछे छुपी कड़वी सच्चाई को तुमने नही देखा है। जब तुम्हे इसका पता चलेगा तो तुम्हारा प्यार किसी गर्म तवे पर पड़े पानी की बूंदों की तरह भाप बनकर उड़ जायेगा। जानते हो एक एक्सीडेंट की वजह से मेरे कमर के नीचे के हिस्से ने काम करना बन्द कर दिया है। मैं बिना किसी सहारे के अपने पैरों पर खड़ी नही हो पाती हूँ, अपने जरूरी काम मैं खुद नही कर पाती हूँ। और तुम मुझसे शादी की बात कर रहे हो। बताओ मैं कैसे तुमसे शादी कर सकती हूँ। क्या ये सब जानने के बाद भी तुम मुझसे शादी करोगे, शायद नहीं।' अनुराग ने पंखुड़ी के पास जाकर उसके चेहरे को अपने हाथों में लेते हुये कहा- 'मैनें तुमसे सच्चा प्यार किया है और मैं तुमसे फिर पूछ्ता हूँ क्या तुम मुझसे शादी करोगी। अगर तुमने इस बार भी ना कहा तो मैं तुम्हें भगा ले जाऊँगा।' ये कहकर अनुराग मुस्कुरा दिया.. पंखुड़ी के चेहरे पर भी मुस्कान तैर गयी। उसने अनुराग के हाथों को चूमते हुए हाँ में गर्दन हिला दी।


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  1. wah anurag ji...... wah..
    simply great.... aisa to sirf kahaniyon me hi ho sakta hai....ye kahani ko padh kr aisa mahsus hua jaisa kash ye sab wastaw me bhi ho sakta... bahut hi sundar rachna hai aapki...isko padh kr dil mantra mugdh ho gaya....

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  2. वाह! उम्दा लगा पढ़कर...सच्चा प्यार..सुखद अंत!! आनन्द आया..बेहतरीन लेखनी है आपकी.

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