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पिछले दिनों जो कुछ भी रामजस कॉलेज में हुआ उसको देख सुनकर दुःख भी हुआ और साथ में मन आक्रोश से भर उठा | क्या अभिव्यक्ति कि आजादी के नाम पर कुछ भी बोलना जायज है वो भी देश के खिलाफ? ये सिर्फ हिन्दुस्तान में ही संभव है कि चंद सिरफिरे लोग और मीडिया अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश को तोड़ने का काम करते हैं और उनके खिलाफ कोई कार्यवाही होने कि जगह कुछ राजनीतिज्ञ और खुद को बुद्धिजीवी कहलाने वाले लोग उनका समर्थन करते हैं |



जिस तरह से आज, भारत का एक वर्ग, अभियक्ति की आज़ादी के नाम पर भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारे और एक शहीद हुए की बेटी का अपने पिता के कातिल से मुहब्बत का इज़हार करने पर, निर्लज्जता से समर्थन कर रहा है, वह साफ़ दिखलाता है की अपना ही खून खराब हो चुका है। उनकी गलती तो है ही लेकिन हम भी कम  दोषी नही है।

किसी भी राष्ट्र की अस्मिता और उसके अस्तित्व की रक्षा के लिए उसका सबसे प्रचण्ड अस्त्र उसके शहीदों और उनके साथ गद्दारी करने वालो की याद होती है। भारत उन दुर्भाग्यशाली राष्ट्रों में से रहा है जहां राष्ट्रभक्त क्रांतिकारियों को तो भुलाया ही गया है, वहीं उनके साथ गद्दारी करने वालो को भी भुला दिया गया है। वे या तो इतिहास की स्मृति से छांट दिए गये है या फिर उन्हें स्वतंत्रता के बाद फिर से प्रतिष्ठित होने का अवसर दिया गया है।

यह कौन सा ज्ञान है और कैसा ज्ञान है जहाँ अपनों से हिकारत और कातिल से मुहब्बत सिखायी जाती है? यह कौन सा ज्ञान है जहाँ राष्ट्र की रक्षा और सुरक्षा के लिए युद्ध को दोषी मान कर, राष्ट्र, यानि भारत को ही मुजरिम बनाया जाता है और जो पाकिस्तान दशको से भारत में मौत की सौगात भेजता रहा है, उसका समर्थन किया जाता है ?


यह कोई ज्ञान नही यह विध्वंसक अज्ञान है और इसका सिर्फ एक ही उपाय है कि ये जहाँ जब भी यह मौका दें, इनको मसल डालो क्योंकि यह लोग कुतर्क के पराधीन तर्क से परे, पागल, विक्षिप्त हो चुके है।
और पागल कुत्ते को लाठी नही मारी जाती है, उसे गोली मार दी जाती है।

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