सोचकर भी मुझको यकीं ना हुआ,
कैसे दोस्ती हो गयी उनसे पता ना चला,
कैसे चुपके से दिल में वो मेरे आ गयीं,
वो अजनबी से कब मेरी हो गयीं पता ना चला,
उनकी सूरत के चर्चे ज़माने में हैं,
पर उनकी शीरत ने मेरे दिल में घर कर लिया,
उनकी हँसी मेरे मन में कुछ इस तरह छा गयी,
कि मन्दिर की घंटियों का पता ना चला,
उनकी बातों में है कुछ नशा इस कदर,
कब हम मदहोश हो गये इसका पता ना चला,
मेरे सपनों में आना उन्हीं का रहा,
कब सुबह हो गयी इसका पता ना चला,
मैं चला था सफर में अकेला मगर,
कब वो मेरी हमसफ़र हो गयीं इसका पता ना चला।
दोस्त तो चुपके से ही दिल मे आ जाते है. इनके पाव मे धमक नही होती
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