मेरे ज़ेहन में उठनेवाले सारे सवालों में मिलना ।
रात- दिन तुम मुझको मेरे ख़यालों में मिलना ॥
मैं हवा हूँ, कर न पाऊँ 'ग़र मुलाक़ात हर रोज़
पलकों के अँधेरे में मिलना, धड़कन के उजालों में मिलना ।
हर पल पसंद है तेरा रुप- श्रृंगार मुझको
बंद ज़ुल्फ़ों में मिलो या खुले बालों में मिलना ।
तेरे संग रहकर ही बदल दूंगा मैं मौसम के मिज़ाज को
तुम बस इठलाती रुत की मस्त चालों में मिलना ।
जब तक हो मुझ पर भरोसा, बेबाक मुझे अपना समझो
सामने मिलो, न मिलो, मेरी यादों के भँवरजालों में मिलना ।
होकर तुमसे जुदा न रह पा रहा हूँ !
अपनी बेचारगी किसी से न कह पा रहा हूँ !!
चाहता है दिल वक़्त- बेवक्त साथ तेरा
अब ये तन्हाई बिल्कुल न सह पा रहा हूँ !
तह- ए- दिल से चाहा था तुम्हें प्यार करना
क्या जाने क्यूँ इसकी न तह पा रहा हूँ !
तेरा मुझको बेरुखी से क़यामत में छोड़ जाना
चाहता हूँ टूटना पर न ढह पा रहा हूँ !
-इन्दल कुमार
kya kahun..anuraag ji
ReplyDeletebhavnaon ka itana adbhut mishran
aapne darshaya hai..bahut achcha laga
baar baar padhane ka man karata hai..
अच्छी रूमानी रचना है आपकी...वाह...लिखते रहें...
ReplyDeleteनीरज