मैं कभी बतलाता नहीं...
पर semester से डरता हूँ मैं माँ ...|
यूं तो मैं दिखलाता नहीं ...
grades की परवाह करता हूँ मैं माँ ..|
तुझे सब है पता ....है न माँ ||
किताबों में ...यूं न छोडो मुझे..
chapters के नाम भी न बतला पाऊँ माँ |
वह भी तो ...इतने सारे हैं....
याद भी अब तो आ न पाएं माँ ...|
क्या इतना गधा हूँ मैं माँ ..
क्या इतना गधा हूँ मैं माँ ..||
जब भी कभी ..invigilator मुझे ..
जो गौर से ..आँखों से घूरता है माँ ...
मेरी नज़र ..ढूंढे question paper...सोचूं यही ..
कोई सवाल तो बन जायेगा.....||
उनसे में ...यह कहता नहीं ..
बगल वाले से टापता हूँ मैं माँ |
चेहरे पे ...आने देता नहीं...
दिल ही दिल में घबराता हूँ माँ ||
तुझे सब है पता .. है न माँ ..|
तुझे सब है पता ..है न माँ ..||
मैं कभी बतलाता नहीं... par semester से डरता हूँ मैं माँ ...|
यूं तो मैं दिखलाता नहीं ... grades की परवाह करता हूँ मैं माँ |
तुझे सब है पता ....है न माँ ||
तुझे सब है पता ....है न माँ ||
छू कर मेरे मन को.........
ReplyDeleteछू कर पुस्तक को,मेरे बेटे ये बतलाना
डर क्यूं लगता है?,इस पर तू गौर फ़रमाना
तू जो पढे टाईम पर....तो तू ये जानेगा...तो तू ये जानेगा
हर प्रश्न का ही उत्तर...तुझको भी आ जायेगा...तुझको भी आ जायेगा
फ़िर तुझको न पडेगा... यहाँ-वहाँ से टिपियाना...
छूकर पुस्तक को......
समय का मोल तू जान...समय को तू पहचान...समय को तू पहचान
डर में मत तू जी...गर पाना है सम्मान...पाना है सम्मान
तू तो है ग्यानी...क्यूँ हरकत करे बचकाना...
छू कर पुस्तक को.........