फ़िर तेरी याद ने इतना मुझे रुलाया है।
दर्द उतना ही बढ़ा जितना इसे दबाया है।
आंसू छलके ही रहे रोज़ मेरी आंखों से,
ज़ख्म जलते ही रहे बीती हुई बातों से,
आज यह दिन भी मुझे प्यार ने दिखाया है।
दर्द उतना ही बढ़ा जितना इसे दबाया है।
तन्हाई में मुझे फ़िर अतीत याद आता है,
जैसे दिल पे मेरे एक तीर सा चल जाता है,
अकेले में हम ने अपना दिल जलाया है।
दर्द उतना ही बढ़ा जितना इसे दबाया है।
अपने प्यार की अभी धूम भी मची तो न थी,
साँसों में तेरी मेरी साँस अभी रची तो न थी,
पर ज़फा से तेरी फूल प्यार का मुरझाया है।
दर्द उतना ही बढ़ा जितना इसे दबाया है।
याद है शाम वो जब तुम ने बातों बातों में,
संदेश कितने दिए थे तुम ने आँखों आखों में,
आखें तेरी है वही दिल ही अब पराया है।
दर्द उतना ही बढ़ा जितना इसे दबाया है।
कोई पूछे तो ज़रा ग़म के मज़े दिल से मेरे,
आंसू बह आते है बस नाम लेते ही तेरे,
यह किस मुकाम पर प्यार हमे ले आया है।
दर्द उतना ही बढ़ा जितना इसे दबाया है।
अब तो बस रोज़ मैं यह गीत लिखा करता हूँ,
मौत आती तो नही पर रोज़ मरा करता हूँ,
ग़म में हम ने यह दिल गीतों से ही बहलाया है।
दर्द उतना ही बढ़ा जितना इसे दबाया है।
मन की गहराइयों से लिखी कविता मनो लेखनी मैं स्याही नहीं दर्द भर दिया हो बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत ही गहरी, सोज़ से भरी रचना
यादे कुछ ऐसी ही होती है भाई.........जिसे जितना दबाया जाय वो उतना ही याद आती है .....................बढिया रचना
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