किसी महफिल या वीरानों में मेरा ज़िक्र ना करना,
किन्ही अपने बेगानों में मेरा ज़िक्र ना करना,
हर कोई समझ ना सकेगा हमारी दोस्ती को,
अपने दीवानों से मेरा ज़िक्र ना करना,
अकेले बैठ कर सोचो जब मेरे बारे में,
देखो कहीं लफ्ज़ों का सहारा ना लो तुम,
कुछ सोच के चाहे मुस्कुरा दो,
पर घर की दीवारों से मेरा ज़िक्र ना करना,
लोग कब समझे हैं किसी के साथ हँसने
और मायूसी में एक दूसरे को हँसाने का मतलब,
शक़ की गहराईयों में ना डुबा दे हमको,
किसी नदी के किनारे से मेरा ज़िक्र ना करना,
शायद ही जान सके कोई मेरे एहसासों को,
देखना कहीं मज़ाक ना बन जाऊँ दूसरों के लिए,
अपने बारे में कविता मैं खुद ही लिख लूँगा,
किसी शायर या कहानीकारों से मेरा ज़िक्र ना करना,
गर कोई शक्स तुमसे पूछे मेरे बारे में,
और सच मे तुम उस से कुछ छुपा ना सको,
तो बिना हिचकिचाए पूरी बात बता देना,
मगर सिर्फ ईशारों मे मेरा ज़िक्र ना करना,
ये मत सोचना कि कुछ छुपाने को कह रहा हूँ,
या कुछ और आ गया है मेरे मन मे,
बस डरता हूँ कि इस रिश्ते को कोई नज़र ना लग जाए,
इस लिए कहता हूँ,अपने दोस्तों यारों से मेरा ज़िक्र ना करना...
बिलकुल नहीं कहेंगे कि आपकी रचना तो अच्छी है मगर बताने से मना किया है वैसे भी आज कल टिप्पणी पर अंगुलियाण उठने लगी हैं सुन्दर अभिव्यक्ति आभार्
ReplyDeleteअजी आपका जिक्र नहीं करेंगे...बस एक सुंदर सी टिप्पणी लिखेंगे...बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत खूब भाई जी
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