2

काश मैं तेरे हसीन हाथ का कंगन होता

तू बडे प्यार से बडे चाव से बडे अरमान के साथ
अपनी नाज़ुक सी कलाई में चढाती मुझ को
और बेताबी से फ़ुर्कत के खिज़ां लम्हों में
तू किसी सोच में डूबी जो घुमाती मुझ को
मैं तेरे हाथ की खुश्बू से महक सा जाता
जब कभी मूड में आ कर मुझे चूमा करती
तेरे होंठों की शिद्दत से मैं दहक सा जाता

रात को जब भी तू नींदों के सफ़र पर जाती
मर्मरी हाथ का इक तकिया बनाया करती
मैं तेरे कान से लग कर कई बातें करता
तेरी ज़ुल्फ़ों को तेरे गाल को चूमा करता
जब भी तू बन्द कबा खोलने लगती जानां
अपनी आंखों को तेरे हुस्न से खेला करता
मुझ को बेताब सा रखता तेरी चाहत का नशा
मैं तेरी रूह के गुलशन में महकता रहता
मैं तेरे जिस्म के आंगन में खनकता रहता
कुछ नही तो यही बेनाम सा बन्धन होता

काश मैं तेरे हसीन हाथ का कंगन होता।

Post a Comment

आप के द्वारा की गई टिप्पणी मेरा मार्गदर्शन करती है। अतः अपनी प्रतिक्रिया अवश्य टिप्पणी के रूप में दें।

 
Top