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ये डीग्री भी लेलो, ये नौकरी भी लेलो
ये डीग्री भी लेलो, ये नौकरी भी लेलो,
भले छीन लो मुझसे USA का वीसा
मगर मुझको लौटा दो वो कॉलेज का ,
वो चाय का पानी, वो तीखा समोसा……

कडी धूप मे अपने घर से निकलना,
वो प्रोजेक्ट की खातीर शहर भर भटकना,
वो लेक्चर मे दोस्तों की प्राक्सी लगाना,
वो सर को चीढाना ,वो एरोप्लेन उडाना,
वो सबमीशन की रातों को जागना जगाना,
वो ओरल्स की कहानी, वो प्रैक्टिकल का किस्सा…..

बीमारी का कारण दे के टाईम बढाना,
वो दुसरों के Assignments को अपना बनाना,
वो सेमीनार के दिन पैरो का छटपटाना,
वो WorkShop में दिन रात पसीना बहाना,
वो Exam के दिन का बेचैन माहौल,
पर वो माँ का विश्वास - टीचर का भरोसा…..

वो पेडो के नीचे गप्पें लडाना,
वो रातों मे Assignments Sheets बनाना,
वो Exams के आखरी दिन Theater मे जाना,
वो भोले से फ़्रेशर्स को हमेशा सताना,
Without any reason, Common Off पे जाना,
टेस्ट के वक्त Table में किताबों को रखना,
इसी तरह टीचर्स को देना झाँसा.....

कॉलेज की सबसे पुरानी निशानी,
वो चायवाला जिसे सब कहते थे 'जानी',
वो जानी के हाथों की कटिंग चाय मीठी,
वो चुपके से जर्नल में भेजी हुई चिट्ठी,
वो पढ़ते ही
चिट्ठी उसका भड़कना,
वो चेहरे की लाली वो आँखों का गुस्सा.....

कॉलेज की वो सारी लम्बी सी रातें,
वो दोस्तों से
कैन्टीन में प्यारी सी बातें,
वो
Gathering के दिन का लड़ना, झगड़ना ,
वो लड़कियों का यूँ ही हमेशा अकड़ना,
भुलाये नहीं भूल सकता है कोई,
वो कॉलेज, वो बातें, वो शरारतें, वो जवानी.....

काश हम फिर दोहरा सकते कहानी,
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी.....



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  1. वाह वाह्क्या बात है सच मे पुराने दिन कितने अच्छे लगते हैं बहुत सुन्दर शुभकामनायें

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  2. सही लिखा है कुछ चीजों की याद हमेशा बनी रहती है। मन करता है काश! उन पलों को फिर जी पाते।लेकिन गया वक्त कब लौटा है भाई!!

    सुन्दर रचना लिखी है।बधाई।

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  3. आप की कविता ने कालेज के दिन याद करवा दिए...सच जीवन में ऐसे दिन दुबारा नहीं आते...सुनहरी दिन होते हैं वो...
    नीरज

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