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न हम बदले न तुम बदले, मगर लगता है सब बदला !
ख़बर ना हम को लग पाई, जहाँ ये जाने कब बदला !!

थी बस ये आरजू दामन में मेरे, दो चार खुशीयाँ हो !
है मेरी हर दुआ जायज, मगर लगता है रब बदला !!

बहुत गुजरे तमन्ना ले, की एक दीदार तेरा हो !
न आए तुम कभी दर पे, तो रस्ता हमने अब बदला !!

मैं चलता कुछ कदम तो और, पर ऐसी लगी ठोकर !
करूँ क्या बात गैरों की, के रंग अपनों ने जब बदला !!

न मझधारो पे मै हारा, मगर डूबा किनारे पे !
नजर आया ही था साहिल, हवायें रुख के तब बदला !!

कभी हर दिल मे जीता था, के हर चेहरे पे हँसता था !
हुआ विरान मरघट सा, शहर ये जाने कब बदला !!

न हम बदले न तुम बदले, मगर लगता है सब बदला !

-पियूष तिवारी

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