भाषणों से युग बदलने का नहीं|
बेबसी का पाश है जब तक नियंता,
पश्चना का दैत्य टलने का नहीं|
भाषणों से युग बदलने का नहीं|
जब तलक हम बातें करते जा रहें,
कर्म के हित स्वांग भरते जा रहें|
हो सकी कुछ भी नहीं तब्दीलियाँ,
बेकसों के नयन झरते जा रहें|
नव-सुबह की रौशनी जब तक न निकले,
दीप से अब काम चलने का नहीं|
भाषणों से युग बदलने का नहीं|
व्याप्त अंतर्दाह है नैराश्य का,
लुट गये निज रहबरों के छद्म से|
क्षुब्ध हैं! हैवानियत से क्या करें?
बुझ चुके! नियत चल रहे प्रपंच से|
अनय को कुचले बिना कुछ भी न होगा,
सांत्वना से मन बहलने का नहीं|
भाषणों से युग बदलने का नहीं|
कागजों पर चल चुकी गाडी बहुत,
योजनाएं लग चुकीं खारी बहुत|
क्या पता कब तक चलेगा ढोंग यह,
हो चुकी है मौत से यारी बहुत|
है जहाँ पड़ती ज़रूरत ढेर की,
बूंद से जीवन संभलने का नहीं|
भाषणों से युग बदलने का नहीं|
नाच-रंग, नाटक-तमाशे हो चुके,
वायदों के गर्त में सब सो चुके|
मानवी इज्ज़त लगी है दाँव पर,
जिंदगी के ख्वाब धूमिल हो चुके|
ठोस धरती पर कदम रखे बिना,
कल्पना से हल निकलने का नहीं|
भाषणों से युग बदलने का नहीं|
''यायावर''
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