यहाँ सेज काटों के सजते रहें हैं,
लहू से सने फूल पचते रहें है|
भले जन्म कलिओं का होता कफ़न में,
मगर ढोल खुशिओं के बजते रहें है|
अमीरी में कुत्ते भी रहते यहाँ पर,
गुज़र आदमी का कठिन देश में है|
अगर कह सको! कह अमन देश में है|
विपुल धन बरसता यहाँ वादिओं में,
वतन ही सिमटता यहाँ खादिओं में|
कहीं धन बिना जल रहीं दुल्हने है,
कहीं बाढ़ दौलत की है शादिओं में|
लटकते हैं रेशम के पर्दे घरों में,
कहीं तन ढके ना वसन देश में है|
अगर कह सको! कह अमन देश में है|
कहर गाँव पर है शहर बस रहें हैं,
सितारों पर चढ़कर नगर बस रहें हैं|
अलग मुल्क में आदमी जी रहा है,
आवारों-नज़ारों के घर बस रहें हैं|
"सुधारो" के सपने महल के लिये है,
गरीबी के चर्चे गहन देश में है|
अगर कह सको! कह अमन देश में है|
अलग राग गुंजित, अलग ढोल बजता,
अलग बाग़ लगता, अलग फूल सजता|
"बहारें" हैं चाहें बेढंगी ही क्यूँ न,
बहारों का अपना अलग राज होता|
सफलता ही व्यक्ति पर कहर बन गयी है,
समुन्नत प्रजा का नमन देश में है|
अगर कह सको! कह अमन देश में है|
''यायावर''
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