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रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा
एक आयी लहर कुछ बचेगा नहीं...
तुमने पत्थर का दिल हमको कह तो दिया
पत्थरों पर लिखोगे मिटेगा नहीं...

मैं तो पतझड़ था फिर क्यूँ निमन्त्रण दिया
ऋतु वसन्ती को तन पर लपेटे हुए
आस मन में लिए प्यास मन में लिए
कब शरद आयी पल्लू लपेटे हुए
तुमने फेरी निगाहें अन्धेरा हुआ
ऐसा लगता है सूरज उगेगा नहीं
रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा..

मैं तो होली मना लूँगा सच मान लो
तुम दिवाली बनोगी ये आभास दो
मैं तुम्हें सौंप दूंगा तुम्हारी धरा
तुम मुझे मेरे पंखों को आकाश दो
उंगलियों पर दुपट्टा लपेटो न तुम
यूँ करोगे तो दिल चुप रहेगा नहीं
रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा..

आँख खोली तो तुम रुक्मिणी सी दिखी
बन्द की आँख तो राधिका सी लगी
जब भी सोचा तुम्हें शान्त एकान्त में
मीराबाई सी एक साधिका तुम लगी
कृष्ण की बाँसुरी पर भरोसा रखो
मन कहीं भी रहे पर डिगेगा नहीं
रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा..


-विष्णु सक्सेना

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  1. आपकी अपनी बहन के प्रति भावनाएं प्रशंसनीय हैं , गीत भी आपने उत्कृष्ट भावनाओं वाला ही चुना है

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  2. बहुत अच्छे विष्णु जी

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  3. Sir.. आप महान है

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  4. पत्नी और मेरे बीच के रिश्ते को इससे अच्छा कोई नहीं व्य कर पाया

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